15.11.2020रविवार कार्तिक मासे कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि
पूजन मुहूर्त – दोपहर 03.17 से शाम 05 .24 बजे तक ।
विशेष – प्रात:काल गाय- बैल आदि को स्नान कराए गौ को भोजन (खिचड़ी),मिठाई खिलाकर पूजन करें,सायंकाल गोबर से गोवर्धन पर्वत के प्रतीक बनाकर पूजन कर परिक्रमा करें एक दूसरे को गोबर का तिलक करे
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है इसी दिन बली पूजा गोवर्धन पूजा मार्ग पाली आदि होते हैं
गोबर का अन्नकूट बनाकर या उसके समीप विराजमान श्री कृष्ण के सम्मुख गाया ग्वाल बालों की पूजा की जाती है यह ब्रिज वासियों का मुख्य त्यौहार होता है इस दिन मंदिरों में विविध प्रकार की खाद्य सामग्रियों से भगवान का भोग लगाया जाता है

कथा – एक दिन भगवान कृष्ण ने देखा कि पूरे ब्रज में तरह-तरह की मिष्ठान तथा पकवान बनाए जा रहे हैं पूछने पर ज्ञात हुआ कि वृकासुर संहारक, मेघदेवता , देवराज इंद्र की पूजा के लिए तैयार हो रहा है ऐसे ही वर्षा होगी गायों को चारा मिलेगा और जीवकोपार्जन की समस्या हल होगी

यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की निंदा करते हुए कहा कि उस देवता की पूजा करनी चाहिए जो प्रत्यक्ष आकर पूजन सामग्री स्वीकार करें वह प्रवचन सुनकर कहां की कोटि कोटि देवताओं के राजा की इसी तरह से आपको निंदा नहीं करनी चाहिए कृष्ण ने कहा इंद्र में क्या शक्ति है ?जो पानी बरसा कर हमारी सहायता करेगा उससे तो शक्तिशाली तथा सुंदर यह गोवर्धन पर्वत है जो वर्षा का मूल कारण है इसकी हमें पूजा करनी चाहिए भगवान श्री कृष्ण के बाकजाल में फंसकर सभी ब्रज वासियों ने घर जाकर गोवर्धन पूजा के लिए चारों ओर धूम मचा दी तत्पश्चात नंद जी ने गवालों को गणों से ही एक सभा में कृष्ण से पूछा कि इंद्र पूजा से तो दुर्भिक्ष उत्पीड़न समाप्त होगा
चौमासे के सुंदर दिन आएंगे मगर गोवर्धन पूजा से क्या लाभ होगा? उत्तर में श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन की भूरी भूरी प्रशंसा की तथा गोपियों की आजीविका का एकमात्र सहारा सिद्ध किया भगवान की बात सुनकर समस्त ब्रजमंडल बहुत ही प्रभावित हुआ तथा स्वगृह जा जाकर सुमधुर मिष्ठानों पकवानों सहित पर्वत तराई में कृष्ण द्वारा बनाई विधि से गोवर्धन की पूजा की
भगवान की कृपा से ब्रज वनिताओं द्वारा अर्पित समस्त पूजन सामग्री को गिरिराज ने स्वीकार करते हुए को आशीर्वाद दिया सभी प्रजाजन अपना पूजन सफल समझकर प्रसन्न हो रहे थे तभी नारद जी इंद्र महोत्सव देखने की इच्छा से ब्रज आ गई उनके पूछने पर ब्रज के नागरिकों ने बताया कि श्री कृष्ण की आज्ञा से इस वर्ष इंद्र महोत्सव समाप्त कर दिया गया है उसके स्थान पर गोवर्धन पूजा की जा रही है यह सुनते ही नारा उल्टे पांव इंद्रलोक गए तथा खिन्न मुख मुद्रा में बोले हे राजन् महलों में सुख की नींद की खुमारी ले रहे हो उधर ब्रज मंडल में तुम्हारी पूजा समाप्त करके गोवर्धन की पूजा हो रही है
इसमें इंद्र ने अपनी मानहानि समझकर मेघा को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय कालिक मूसलाधार वर्षा से पूरा गांव तहस-नहस कर देख कर बता कर प्रलयंकारी बादल ब्रिज की ओर उमड़ पड़े भयानक वर्षा देखकर ब्रजमंडल घबरा गया सभी बृजवासी श्री कृष्ण की शरण में जाकर बोले भगवान इंद्र हमारी नगरी को डुबाना चाहता है अब क्या किया जाए?
श्री कृष्ण ने सांत्वना देते हुए कहा- कि तुम लोग गोवा सहित गोवर्धन की शरण में चलो वहीं तुम्हारी रक्षा करेगा इस तरह से समस्त बाल बाल गोवर्धन की तराई में पहुंच गए श्री कृष्ण ने गोवर्धन कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया और 7 दिन तक गोपगोपिकाये उसी छाया में सुख पूर्वक रहे भगवान की कृपा से उनको एक छींटा भी ना लगा
इससे इंद्र को महान आश्चर्य हुआ था भगवान की महिमा को समझ कर अपना गर्व नष्ट जानकर वह स्वयं रह गया और भगवान कृष्ण के चरणों में गिरकर अपनी मूर्खता पर महान पश्चाताप हुआ सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखकर इसी भांति प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी
तभी से यहां उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा